Friday, September 17, 2010

में उड़ना चाहता हूँ

में उड़ना चाहता हूँ

नहीं करना वो, जो दुनिया करती हैं
नहीं सोचना वैसे, जैसे दुनिया सोचती हैं
मेरे दिल को जो भाये, बस वो करना चाहता हूँ

में उड़ना चाहता हूँ

क्यों रहूँ रिश्तों में बंधा हमेशा में?
क्यों जकड़ा रहूँ समाजों के खोखले नियमों से में?
में अपनी मंजिल तक, अपनी राह पे चलके जाना चाहता हूँ

में उड़ना चाहता हूँ

मालूम हैं मुश्किल बहुत हैं राह मेरी,
जानता हूँ के आसमान भी खाली नहीं ठोकरों से,
पर में एक बार सब भूल के, सिर्फ दिल की मानना चाहता हूँ

में उड़ना चाहता हूँ

ख्वाब बड़े हैं मेरे तो क्या करून में?
क्या खुद की बनाई जंजीरों में फंसा रहूँ में?
आसमान बुलाता हैं बाहें खोल के मुझे...

में उड़ना चाहता हूँ

चलोगी साथ मेरे? हैं हिम्मत सब छोड़ने की?
पर काट के दुनिया के, हैं हिम्मत सपनो के पर खोलने की?
अगर हैं तो आओ..में 'अपने' आसमान पे तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ..

में उड़ना चाहता हूँ

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