Wednesday, July 28, 2010

चुनते हैं सभी...

चुनते हैं सभी ख़ुदा को...जब बात आती हैं चुनने की
में बेकार ही इतराता रहा सिर्फ इंसान बनकर

न कोई चमत्कार की शक्ति मुझमें, न काबू चाँद-सूरज पर
कोई क्यों याद करता मुझे बाज़ी अपनी जीत कर...

शायर हो..रदीफ़ - काफियों से दिल बहलता होगा तुम्हारा
कहाँ नशा आता तुम्हे मेरी बेकार की बातें सुनकर???

दिल की स्याही बस नोक पे आके रुक जाती हैं..
पूछती हैं ..क्या खत्म हो जायेंगे जज़्बात सारे सिर्फ ग़ज़ल बनकर???

तुम तो ख़ुदा बन गए जीते जी ही..बहुत ख़ुशी हैं इस बात की मुझे
हैराँ हूँ "काफिर" के में याद भी न रहा किसीको मरकर??

Monday, July 5, 2010

Sunday, July 4, 2010

राम के नाम पे

राम के नाम पे

इतने लोगों की जान लेके भी तुम नहीं दिला सके राम को अपना घर
ना जाने कितनी सौगंधे खाई और खिलाई थी सियासत वालों ने...

मस्जिद तोड़ के भी मंदिर तो ना बना सके राम का,
हाँ, नफरत का घर ज़रूर बना दिया लाखों दिलों में हमेशा हमेशा के लिए

ताज्जुब होता हैं ये देख के, के कैसे बस कुछ एक लोग,
करोड़ों की सोच बदल सकते हैं.

मैंने कितनी कोशिश की थी करीम भाई से ५ रूपए कम करवाने की, हनुमान की फोटो के लिए
पर वो नहीं माना था और कहा था, " भगवान् की फोटो में कम नहीं होता हैं साब"...और फिर से अपना अखबार लेके बैठ गया था.

पता नहीं कैसे वो अल्लाह के नाम को और भगवान् की तस्वीर को एक साथ रखता था अपने ठेले में...
कभी कोई भी प्रॉब्लम नहीं हुई उसे तो...

कोई फर्क नहीं था उसके लिए राम और अल्लाह के बीच...
बस अपने काम से काम था...और खुश था वो.

काश एक करीम हम सबके दिल में होता तो...
राम के नाम पे..इतने लोग रावन ना बनते....

ghoomna

दिनभर तुम मेरे जेहन में रहती हो...
पर जैसे ही घर के बहार कदम रखता हूँ, तुम या तो मेरी कार की passenger सीट पे या तो मेरी bike की पिछली सीट पे आके बैठ जाती हो

बड़ा मज़ा आता हैं तुम्हारे साथ घूमने में...
और में भी बड़े चाव से अपना शहर दिखता हूँ तुम्हे...

"वो रोड जो आगे से लेफ्ट मुड़ता हैं ना, वहाँ...कमाल अमरोही का स्टूडियो हैं
और ये पूरा industrial एरिया...
वो देखो...वो अमिताभ बच्चन का घर हैं और सामने जुहू बीच हैं..."

तुम भी बड़े ध्यान से देखती हो सब जो में दीखाता हूँ.
साच में, बड़ा मज़ा आता हैं तुम्हारे साथ घूमने में...

पर पिछले कुछ दिनों से काफी काम हैं और बहुत busy हूँ में भी, और कहीं बहार नहीं ले जा पाया हूँ तुम्हे
और इसीलिए तुम भी शायद रूठी हो मुझसे ...

काफी दिनों से bike की पिछली सीट खाली हैं और कार की passenger सीट तुम्हे मिस करती हैं..

आजाओ अब..आजाओ ना

बरसात का मौसम हैं..और ये शहर बारिशों में बहुत सुन्दर दीखता हैं....