Tuesday, December 13, 2011
Thursday, October 13, 2011
यातायात
मैं खिड़की पे बैठा
देखता हूँ यातायात को
कोई गाडी एक छोर से आती है पुल पे
और दुसरे छोर से निकल जाती है
उन हज़ारों गाड़ियों में से कुछ एक याद रह जाती हैं
तुम भी वैसे ही मिली थीं ........
हज़ारों लोगों की भीड़ में
ज़िन्दगी के एक छोर से आई थी
दूसरे से चल दी थी
Monday, October 10, 2011
माज़ी
न जाने कितनी चीज़ें हैं ऐसी
जिनकी कोई ज़रुरत तो नहीं हैं
पर फेंकी भी नहीं है
भले अब देखता भी नहीं उन्हें
पर पता है के वो वहीँ होगीं
जहाँ बरसों से है...
उनका अपने गिर्द होना बड़ा comforting होता है
कुछ बातें भी उसी तरह पड़ी हुई है ज़ेहन में
मुझे उनकी आदत है
और वे मेरे साथ रहने की आदि हो गई है...
- मैं तुम्हे न सोचकर भी
हमेशा अपने साथ ही रखता हूँ...
जिनकी कोई ज़रुरत तो नहीं हैं
पर फेंकी भी नहीं है
भले अब देखता भी नहीं उन्हें
पर पता है के वो वहीँ होगीं
जहाँ बरसों से है...
उनका अपने गिर्द होना बड़ा comforting होता है
कुछ बातें भी उसी तरह पड़ी हुई है ज़ेहन में
मुझे उनकी आदत है
और वे मेरे साथ रहने की आदि हो गई है...
- मैं तुम्हे न सोचकर भी
हमेशा अपने साथ ही रखता हूँ...
Saturday, September 3, 2011
Friday, August 19, 2011
Tuesday, July 26, 2011
Friday, May 27, 2011
गुलशन
एक गुलशन है
तुम्हारे ही शहर में कहीं
उसका कोई लिखा हुआ पता नहीं है
वो जगह बदलता रहता है अकसर
हमारे ही ख्यालों के साथ चलता रहता है
बस मुझे पता है उस गुलशन के बारे में
और तुम ही जानती हो के कैसे जाया जाता है उधर
वहां ज़माने के सूरज की धूप नहीं आती कभी
वहां अपनी मोहब्बत की छाँव रहती है हरपल
तुम्हारी दाद और मेरी नज्में हाथ पकड़ के घुमते रहते हैं वहाँ
हमने ही बनाया था वो गुलशन
हमने ही जन्म दिया था उसे बरसों पहले
वो पौधे हमारी मोहब्बत के, जो बोये थे उसमें
अब पक्के मज़बूत पेड़ बन गए हैं
हमेशा हरे रहने वाले पेड़
साथ ही बनाया था हमने वो गुलशन पर अब पता नहीं क्यों तुमसे मुलाकात नहीं होती वहाँ
कितनी बार ऐसा हुआ है के मैं जब पहुँचा
तुम बस कुछ ही देर पहले वहाँ से निकल के गई हो
तुम्हारे कदमो की निशाँ बिलकुल ताज़ा होते है है
मैं उनपे पांव रखके तुम्हारे साथ चलने की कोशिश करता हूँ
वो गुलशन हमारे साथ ही चलता रहता है
वो पेड़ कभी सूखेंगे नहीं... जानता हूँ मैं, और तुम भी
वो गुलशन कभी वीरान नहीं होगा..जानता हूँ मैं, और तुम भी
तुम अपने हाथों की नरमी बो आती हो वहाँ जब भी जाती हो
मैं भी कुछ अपनी मोहब्बत के पौधे लगा जाता हूँ क्यारियों में
अकसर जाता हूँ मैं वहाँ
बातें सुनता हूँ उन पेड़ों की, उन्ही की ज़ुबानी
तुम्हारी बातों के फूल से महकता रहता है वो गुलशन
तुम्हारी हंसी की आवाज़ आती है जब पत्ते हिलते है
कोई पत्ता जब आकर गिरता है मुझपे, तो तुम्हारे छु जाने का एहसास होता है मुझे
अकसर जाता हूँ मैं वहाँ
खबर पूछता हूँ उन पेड़ों से तुम्हारी
संदेसे लिख जाता हूँ पेड़ों की शाख पे तुम्हारे लिए जाते वक़्त
तुम्हारी कही हुई बातें सुनता हूँ हवाओं की सरगोशियों में
कुछ नए खिले पत्तों से महसूस करता हूँ नरमी तुम्हारे होंठों की
अकसर जाता हूँ में वहाँ
आती रहना तुमभी जब वक़्त मिले
के नए पौधे और न भी हो तो भी
ये गुलशन आबाद ही रहेगा, हमारी मोहब्बत हमेशा महका करेगी यहाँ
हमारे प्यार के और हमारी बातों के फूल खिलते रहेंगे हमेशा
के पेड़ जब बड़े हो जाते है तब वो अपना वजूद कायम रखने में सक्षम होते है
नए पत्ते जुड़ते रहते है इसमें
नए और पौधे जन्म लेते रहते है उनसे
हमारे बस में नहीं है इस पुराने लम्हों के पेड़ों को काटना
हमारे बस में नहीं है साथ गुज़ारे हुए पलों के गुलशन को वीरान करना
ये गुलशन यूँही रहेगा हमारे साथ
और हमारे बाद भी
मोहब्बत कभी पुरानी नहीं होती, पेड़ों की तरह
हमारी मोहब्बत के पेड़ों पे पतझड़ नहीं आती
हमारी मोहब्बत के पेड़ों पे कभी पतझड़ नहीं आएगी
तुम्हारे ही शहर में कहीं
उसका कोई लिखा हुआ पता नहीं है
वो जगह बदलता रहता है अकसर
हमारे ही ख्यालों के साथ चलता रहता है
बस मुझे पता है उस गुलशन के बारे में
और तुम ही जानती हो के कैसे जाया जाता है उधर
वहां ज़माने के सूरज की धूप नहीं आती कभी
वहां अपनी मोहब्बत की छाँव रहती है हरपल
तुम्हारी दाद और मेरी नज्में हाथ पकड़ के घुमते रहते हैं वहाँ
हमने ही बनाया था वो गुलशन
हमने ही जन्म दिया था उसे बरसों पहले
वो पौधे हमारी मोहब्बत के, जो बोये थे उसमें
अब पक्के मज़बूत पेड़ बन गए हैं
हमेशा हरे रहने वाले पेड़
साथ ही बनाया था हमने वो गुलशन पर अब पता नहीं क्यों तुमसे मुलाकात नहीं होती वहाँ
कितनी बार ऐसा हुआ है के मैं जब पहुँचा
तुम बस कुछ ही देर पहले वहाँ से निकल के गई हो
तुम्हारे कदमो की निशाँ बिलकुल ताज़ा होते है है
मैं उनपे पांव रखके तुम्हारे साथ चलने की कोशिश करता हूँ
वो गुलशन हमारे साथ ही चलता रहता है
वो पेड़ कभी सूखेंगे नहीं... जानता हूँ मैं, और तुम भी
वो गुलशन कभी वीरान नहीं होगा..जानता हूँ मैं, और तुम भी
तुम अपने हाथों की नरमी बो आती हो वहाँ जब भी जाती हो
मैं भी कुछ अपनी मोहब्बत के पौधे लगा जाता हूँ क्यारियों में
अकसर जाता हूँ मैं वहाँ
बातें सुनता हूँ उन पेड़ों की, उन्ही की ज़ुबानी
तुम्हारी बातों के फूल से महकता रहता है वो गुलशन
तुम्हारी हंसी की आवाज़ आती है जब पत्ते हिलते है
कोई पत्ता जब आकर गिरता है मुझपे, तो तुम्हारे छु जाने का एहसास होता है मुझे
अकसर जाता हूँ मैं वहाँ
खबर पूछता हूँ उन पेड़ों से तुम्हारी
संदेसे लिख जाता हूँ पेड़ों की शाख पे तुम्हारे लिए जाते वक़्त
तुम्हारी कही हुई बातें सुनता हूँ हवाओं की सरगोशियों में
कुछ नए खिले पत्तों से महसूस करता हूँ नरमी तुम्हारे होंठों की
अकसर जाता हूँ में वहाँ
आती रहना तुमभी जब वक़्त मिले
के नए पौधे और न भी हो तो भी
ये गुलशन आबाद ही रहेगा, हमारी मोहब्बत हमेशा महका करेगी यहाँ
हमारे प्यार के और हमारी बातों के फूल खिलते रहेंगे हमेशा
के पेड़ जब बड़े हो जाते है तब वो अपना वजूद कायम रखने में सक्षम होते है
नए पत्ते जुड़ते रहते है इसमें
नए और पौधे जन्म लेते रहते है उनसे
हमारे बस में नहीं है इस पुराने लम्हों के पेड़ों को काटना
हमारे बस में नहीं है साथ गुज़ारे हुए पलों के गुलशन को वीरान करना
ये गुलशन यूँही रहेगा हमारे साथ
और हमारे बाद भी
मोहब्बत कभी पुरानी नहीं होती, पेड़ों की तरह
हमारी मोहब्बत के पेड़ों पे पतझड़ नहीं आती
हमारी मोहब्बत के पेड़ों पे कभी पतझड़ नहीं आएगी
Thursday, April 14, 2011
सबसे प्यारी नज्में
मैं तुम्हारे हर ख़याल को लफ़्ज़ों में इस लिए नहीं उतारता
क्योंकि,
बहुत से ख़्याल, दिमाग की गलियों से उँगलियों की नोंक तक नहीं पहुँचते ...
वो बस दिल ही में बस जाते है..
और सच कहूँ..
वो मेरी कुछ सबसे प्यारी नज्में होतीं हैं...
क्योंकि,
बहुत से ख़्याल, दिमाग की गलियों से उँगलियों की नोंक तक नहीं पहुँचते ...
वो बस दिल ही में बस जाते है..
और सच कहूँ..
वो मेरी कुछ सबसे प्यारी नज्में होतीं हैं...
Sunday, March 13, 2011
मैं और मेरा शायर
तुम कौन हो जो मेरे अन्दर रहते तो हो..
पर मुझसे जुदा हो?
मेरा साया हो के मेरा ही दूसरा रूप हो?
तुम्हे दुनिया से कोई लेना-देना नहीं
न फिक्र पैसों की, न दुनियादारी की
न तुम्हे कुछ काम है, नाही आराम करते हो कभी
मैं सोचता हूँ कभी
के कौनसा मैं..मैं हूँ?
वो मैं जो जीता है?या वो मैं जो बस जीने का नाटक करता है?
पर तुम सोचते हो...मुझसे जुदा कभी, कभी बिलकुल मेरी ही तरह
कभी मेरे ही ख्यालों को कागज़ पे रखते हो..
तो कभी मेरी ही जुबां को लफ्ज़ देते हो
तुम्हारा लिखा कभी पढता हूँ तो लगता है
के मैं-तुम बन जाऊं, तुम्हे मैं बना लूं
ऐसे ही जीऊँ, जैसे जीना होता है
पर कभी कभी तुम भी छुप जाते हो दोस्त
काम के पीछे से कभी, या कभी रोज़ मर्रा की जद्दोजेहद में से निकालना पड़ता है तुम्हे
तुम रहो मेरे साथ, मेरे सामने ताके मैं जीता रहूँ....
एक अरसा हो गया है दोस्त कुछ लिखा नहीं तुमने..
कुछ लिख दो के पता चले तुम ज़िन्दा हो अब भी मुझ में
कुछ लिख दो के पता चले..मैं अब भी जी रहा हूँ......
पर मुझसे जुदा हो?
मेरा साया हो के मेरा ही दूसरा रूप हो?
तुम्हे दुनिया से कोई लेना-देना नहीं
न फिक्र पैसों की, न दुनियादारी की
न तुम्हे कुछ काम है, नाही आराम करते हो कभी
मैं सोचता हूँ कभी
के कौनसा मैं..मैं हूँ?
वो मैं जो जीता है?या वो मैं जो बस जीने का नाटक करता है?
पर तुम सोचते हो...मुझसे जुदा कभी, कभी बिलकुल मेरी ही तरह
कभी मेरे ही ख्यालों को कागज़ पे रखते हो..
तो कभी मेरी ही जुबां को लफ्ज़ देते हो
तुम्हारा लिखा कभी पढता हूँ तो लगता है
के मैं-तुम बन जाऊं, तुम्हे मैं बना लूं
ऐसे ही जीऊँ, जैसे जीना होता है
पर कभी कभी तुम भी छुप जाते हो दोस्त
काम के पीछे से कभी, या कभी रोज़ मर्रा की जद्दोजेहद में से निकालना पड़ता है तुम्हे
तुम रहो मेरे साथ, मेरे सामने ताके मैं जीता रहूँ....
एक अरसा हो गया है दोस्त कुछ लिखा नहीं तुमने..
कुछ लिख दो के पता चले तुम ज़िन्दा हो अब भी मुझ में
कुछ लिख दो के पता चले..मैं अब भी जी रहा हूँ......
Tuesday, February 15, 2011
एक रुकी हुई बात
एक रुकी हुई बात
खाली जाम फिर से भरने तलक सन्नाटा
एक भी कश लिए बगैर जलके बुझ गई सिगरेट
एक टेलीफोन नंबर
notepad पे लिख के मिटाए हुए कुछ लफ्ज़
एक पुराना ख़त
एक बात अब भी रुकी हुई है लबों पर
एक और शाम फिरसे कुछ कहे बगैर गुज़र गई
सोच फिरसे बजेगी रात भर खली कमरे में
एक और रात फिर नींद नहीं आएगी
खाली जाम फिर से भरने तलक सन्नाटा
एक भी कश लिए बगैर जलके बुझ गई सिगरेट
एक टेलीफोन नंबर
notepad पे लिख के मिटाए हुए कुछ लफ्ज़
एक पुराना ख़त
एक बात अब भी रुकी हुई है लबों पर
एक और शाम फिरसे कुछ कहे बगैर गुज़र गई
सोच फिरसे बजेगी रात भर खली कमरे में
एक और रात फिर नींद नहीं आएगी
Tuesday, January 18, 2011
Subscribe to:
Posts (Atom)