Tuesday, September 28, 2010

बादल

एक बादल भरी दोपहरी में झील की सतह पर, ढूंढ रहा था एक बूँद, जो सबसे अज़ीज़ थी उसे
और कल रात बरसात में अपने दोस्तों के साथ झील में नहाने को टपकी थी...
बदल को बिना बताये..और अब तक वापस नहीं आई थी...

मुझे देखा तो अपनी भरी आँखों से बादल ने पुछा..."क्या देखा हैं तुमने उसे? छोटी सी थी वो...उसे तो अबतक ठीक से तैरना भी नहीं आता था.."

में बस देखता रह गया उसे...चल दिया वहां से...
मेरी आँखों में झील उतर आई थी....

4 comments:

  1. क्या बात है, उस्ताद.... मतलब गहराई तो बढ़ती ही जा रही है... आसमां फैलता ही जा रहा है....बधाई, बहुत, बहुत बधाई....

    ReplyDelete
  2. bas dost teri sangat ka asar hain :)

    SHUKRIYA

    ReplyDelete
  3. bahut sundar kavita hai........ isi tarah likhte rahen...

    ReplyDelete