Sunday, August 15, 2010

फ़र्ज़

न जाने कितने मेहमानों ने घर आके लूटा था इसे..
दोस्तों ने दोस्त बनकर धोखा दिया था इसे..

भरे पूरे एक बच्चे को यतीम बना के छोड़ गई थी दुनिया
अब खुद जीके दिखाओ ये कहके छोड़ गई थी दुनिया..

तब खुद अपने ज़ख्मों पे मरहम भी लगाया था
और खुद ही अपनी परवरिश भी की थी...

गिरते पड़ते..लड़खड़ाते धीरे धीरे अपने कदमो पे चलना सीखा था इसने
अपने हाथों से मिटटी खोद के फसल उगाना सीखा था इसने

जब कभी बीमार था..तो कईयों ने अपना खून देके ताक़त दी थी इसे..
अनजान मोड़ पे बड़े बुजुर्गों ने ऊंगली पकड़ के सही राह दिखाई थी इसे...

अपने आप खाना सीखा, और अब दूसरों को खिलाता हैं
देख देख के बहुत सीखा..अब दूसरों को सीखता हैं..

छोटे छोटे कदम बढ़ा कर आज इस मकाम पे आ गया हैं
जहाँ दुनिया अब उसे न देखे तो बहुत पछताएगी

६३ सालों से एक ऊंगली छोड़ के दूसरी पकड़ी हैं...
पर अब बालिग़ हो गया हैं ये..अब किसी की ऊंगली की ज़रुरत नहीं..

अब एक दोस्त, एक हमकदम की बारी हैं जो सही राह दिखाए इसे..
नहीं तो किसी जवां लड़के की तरह भटक सकता हैं ये॥जिसका कोई रहबर न हो...

आओ अपना फ़र्ज़ निबायें...हिन्दुस्तान अब हमारी ज़िम्मेदारी हैं..

आओ हिस्दुस्तान को सही राह दिखाए,,,

2 comments:

  1. प्रेरक भाई,

    इसे कहते हैं दिमाग से सोचना और दिल से वही सब लिख भी पाना। एक बहुत ही सटीक रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई। इस नज़्म में जहाँ एक ओर उन सब कठिनाईयों की बात है, जिन से होकर हम यहाँ तक पहुँचे हैं, वहीं एक उम्मीद भी है कि हम सही रास्ते पर बढ़ रहे हैं और उस के साथ ही एक चेतावनी भी कि ये किसी ऎसे जवां लड़के की तरह भटक सकता है, जिस का कोई रहबर ना हो। बहुत ही उम्दा तरीके से इतिहास को वर्तमान का हाथ पकड़ा कर भविष्य के रास्ते पे चलने का सबक दिया है। और हाँ, मज़ा इसी बात का की असली मर्म है वो फ़र्ज़, जो हमारा एक सच्चे नागरिक होने के नाते इस देश की ओर बनता है। आज की पीढ़ी में होने के बावजूद कभी-कभी इस पीढ़ी से बहिष्कृत महसूस होता है, जब अपने से ५-७ साल छोटे किसी नौजवान को देखता हूँ, जो मोबाईल और इंटरनेट के बिना अपनी ज़िंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता और एक पल के लिए भी नहीं सोचता कि इस देश के लिए उस के कुछ कर्तव्य हो सकते हैं। ऎसा नहीं है कि ऎसे लोग हमारी पीढ़ी या हम से पहले की पीढ़ियों में नहीं है, लेकिन आने वाली पीढ़ियों को इस तरह की हिदायतों की शायद अधिक जरूरत पड़ेगी।

    एक बहुत ही प्रेम से सराबोर रचना!!!

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया मोहित भाई...अपनी बात को हु-ब-हु आप तक पोंहचा सका इसे में अपनी जीत मानता हूँ...

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