चुनते हैं सभी ख़ुदा को...जब बात आती हैं चुनने की
में बेकार ही इतराता रहा सिर्फ इंसान बनकर
न कोई चमत्कार की शक्ति मुझमें, न काबू चाँद-सूरज पर
कोई क्यों याद करता मुझे बाज़ी अपनी जीत कर...
शायर हो..रदीफ़ - काफियों से दिल बहलता होगा तुम्हारा
कहाँ नशा आता तुम्हे मेरी बेकार की बातें सुनकर???
दिल की स्याही बस नोक पे आके रुक जाती हैं..
पूछती हैं ..क्या खत्म हो जायेंगे जज़्बात सारे सिर्फ ग़ज़ल बनकर???
तुम तो ख़ुदा बन गए जीते जी ही..बहुत ख़ुशी हैं इस बात की मुझे
हैराँ हूँ "काफिर" के में याद भी न रहा किसीको मरकर??
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