दिनभर तुम मेरे जेहन में रहती हो...
पर जैसे ही घर के बहार कदम रखता हूँ, तुम या तो मेरी कार की passenger सीट पे या तो मेरी bike की पिछली सीट पे आके बैठ जाती हो
बड़ा मज़ा आता हैं तुम्हारे साथ घूमने में...
और में भी बड़े चाव से अपना शहर दिखता हूँ तुम्हे...
"वो रोड जो आगे से लेफ्ट मुड़ता हैं ना, वहाँ...कमाल अमरोही का स्टूडियो हैं
और ये पूरा industrial एरिया...
वो देखो...वो अमिताभ बच्चन का घर हैं और सामने जुहू बीच हैं..."
तुम भी बड़े ध्यान से देखती हो सब जो में दीखाता हूँ.
साच में, बड़ा मज़ा आता हैं तुम्हारे साथ घूमने में...
पर पिछले कुछ दिनों से काफी काम हैं और बहुत busy हूँ में भी, और कहीं बहार नहीं ले जा पाया हूँ तुम्हे
और इसीलिए तुम भी शायद रूठी हो मुझसे ...
काफी दिनों से bike की पिछली सीट खाली हैं और कार की passenger सीट तुम्हे मिस करती हैं..
आजाओ अब..आजाओ ना
बरसात का मौसम हैं..और ये शहर बारिशों में बहुत सुन्दर दीखता हैं....
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