Sunday, July 4, 2010

राम के नाम पे

राम के नाम पे

इतने लोगों की जान लेके भी तुम नहीं दिला सके राम को अपना घर
ना जाने कितनी सौगंधे खाई और खिलाई थी सियासत वालों ने...

मस्जिद तोड़ के भी मंदिर तो ना बना सके राम का,
हाँ, नफरत का घर ज़रूर बना दिया लाखों दिलों में हमेशा हमेशा के लिए

ताज्जुब होता हैं ये देख के, के कैसे बस कुछ एक लोग,
करोड़ों की सोच बदल सकते हैं.

मैंने कितनी कोशिश की थी करीम भाई से ५ रूपए कम करवाने की, हनुमान की फोटो के लिए
पर वो नहीं माना था और कहा था, " भगवान् की फोटो में कम नहीं होता हैं साब"...और फिर से अपना अखबार लेके बैठ गया था.

पता नहीं कैसे वो अल्लाह के नाम को और भगवान् की तस्वीर को एक साथ रखता था अपने ठेले में...
कभी कोई भी प्रॉब्लम नहीं हुई उसे तो...

कोई फर्क नहीं था उसके लिए राम और अल्लाह के बीच...
बस अपने काम से काम था...और खुश था वो.

काश एक करीम हम सबके दिल में होता तो...
राम के नाम पे..इतने लोग रावन ना बनते....

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