Thursday, October 13, 2011

यातायात

मैं खिड़की पे बैठा
देखता
हूँ यातायात को
कोई
गाडी एक छोर से आती है पुल पे
और
दुसरे छोर से निकल जाती है

उन हज़ारों गाड़ियों में से कुछ एक याद रह जाती हैं

तुम भी वैसे ही मिली थीं ........
हज़ारों
लोगों की भीड़ में
ज़िन्दगी
के एक छोर से आई थी
दूसरे
से चल दी थी

मैं अब भी अपनी खिड़की के पास बैठा भीड़ देख रहा हूँ

Monday, October 10, 2011

माज़ी

न जाने कितनी चीज़ें हैं ऐसी
जिनकी कोई ज़रुरत तो नहीं हैं
पर फेंकी भी नहीं है
भले अब देखता भी नहीं उन्हें
पर पता है के वो वहीँ होगीं
जहाँ बरसों से है...
उनका अपने गिर्द होना बड़ा comforting होता है
कुछ बातें भी उसी तरह पड़ी हुई है ज़ेहन में
मुझे उनकी आदत है
और वे मेरे साथ रहने की आदि हो गई है...
- मैं तुम्हे न सोचकर भी
हमेशा अपने साथ ही रखता हूँ...